अंक 2 : मातृत्व दिवस विशेष

हमारे समाज में मां को एक देवी का दर्जा मिला हुआ है और इसी की बदौलत मातृत्व को संसार का सबसे बड़ा सुख माना जाता है। मगर दु:ख कि बात यह है कि हर मां इतनी खुशकिस्मत नहीं। इस दुनिया में कुछ मांएं ऐसी भी हैं जिन्हें न तो देवी माना जाता है और न ही उनका मातृत्व सुख का कारण है। जी हां, हम उन्हीं औरतों की बात कर रहे हैं जिन्हें ये समाज वेश्यायें, रंडी, तवायफ और न जाने किन-किन नामों से पकारता है, उनके मातृत्व को पाप और कलंक कहता है। ऐसी ही कुछ मांओं से कीजिये मुलाकात और जानिये उनके बच्चों और उनके सपनों को पॉडभारती के इस मदर्स डे विशेषांक में। कार्यक्रम की परिकल्पना व संचालन किया है शशि सिंह ने। इस मार्मिक पॉडकास्ट को आप कभी भूल न पायेंगे, हमारा वादा है।

Podbharati | पॉडभारती
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अंक 2 : मातृत्व दिवस विशेष
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11 thoughts on “अंक 2 : मातृत्व दिवस विशेष

  1. Sameer Lal says:

    बहुत ही जबरदस्त और मार्मिक-एक चुनिंदा प्रोफेशनल पेशकश.

    माई रे माई तोहर गुन गाई….
    माई की ममता गवलो ना जाला,
    जेहि दिन जहिये माई हिराई,
    सब कुछ मिली जाहिये, मिलेहि न माई,
    माई रे माई तोहर गुन गाई…….

    ग्रिजेश का गीत सुनकर आँखें नम हो गई. सहज होने का प्रयास अब तक जारी है. समाज के जिस तबके की बात आप लेकर आये हैं, आपका वादा बिल्कुल सच निकला- हम इस मार्मिक पॉडकास्ट को कभी भुल न पायेंगे. बहुत बधाई. ऐसे ही अनेंकों अंकों का इन्तजार है. समस्त पॉडभारती टीम को नमन, साधुवाद और शुभकामनाऐं.

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  2. पंकज बेंगानी says:

    बहुत ही उम्दा. शानदार प्रस्तुतिकरण और शोध. शशिजी बहुत बधाई आपको.

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  3. Ajay Brahmatmaj says:

    takniki barikiyan kaam karte-karte aayengi.sundar pryas hai.ise kitabi aur hindi magzune ki style se door rakhen sound par jyada kaam karna hoga. badhai.

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  4. Chetna Sungh says:

    Hi shashi Bhaiya , Matri divas per aapka yeh prastutitikaran ham logo ko bahut pasand aaya, visheshroop se esmein jo geet ka prayog kiya gaya hai, bahut hi achchha hai.

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  5. Neeraj Diwan says:

    मातृदिवस पर समाज की तिरस्कृत मांओं को आपने याद किया. क्या इतना इंतज़ार करना होगा पॉडभारतीय के अंक का? अंतराल कम करें.

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  6. Ratna says:

    बेहद मार्मिक, खूबसूरत और प्रशंसनीय प्रयास।

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  7. Sanjay Patel says:

    मेरी आंखों की कुछ बूंदें इस डिस्पेच पर … मेरी श्रीमती ये प्रतिक्रिया लिखते वक्त पास बैठी हैं…लिखवाती हैं…आज़ादी के इतने साल बाद भी यदि हम मां को इतना बेबस देख रहे हैं तो मातृ आराधना के सारे पर्व,पूजा,अनुष्ठान बेमानी हैं

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  8. Debashish says:

    अंक पसंद करने के लिये शुक्रिया और सुन्दर संयोजन के लिये शशि को बधाई!

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